हिंदी कविता
बदलते हुए रिश्तों को , गैरों में छुपे फरिश्तों को
ईमान के सस्तों को, दूसरों पे हस्तों को ।
मैंने देखा है
सपनों की उड़ान को, खुशियों के बागान को
इंसानों में छुपे शैतान को, किस्मत के इन्तहान को।
मैंने देखा है
अरमानों की बस्ती को, कुचलती हुई हस्ती को
अल्हड़पन की मस्ती को, खुद को बदलने की जबरदस्ती को ।
मैंने देखा है
नाकामी पे हाथ मलतों को, गैरों की खुशियों से जलतों को
अपनी भावनाएं कुचलतों को, परिस्थितियों में ढलतों को।
मैंने देखा है
हालातों से भागतों को, दूसरे की थाली में झांकतों को
रात रात भर जागतों को, कभी न हिम्मत हारतों को।
मैंने देखा है
बूढी होती जवानी को, मेहनत की कहानी को
बचपन की नादानी को, समय की मनमानी को।
मैंने देखा है
बदलते हुए जहांन को, गिरते हुए इंसान को
जिम्मेदारियों की थकान को, बंदिशों के मकान को।
हाँ मैंने देखा ये सब कुछ, पर कभी नहीं मानी हार।
सोचा कि अगला सवेरा लायेगा, खुशियों की बहार।।
मजबूत कर लिया मन, किया ईश्वर पे विशवास।
यही तरीका जीने का, कभी न छोड़ो आस।।
-प्रिया चौहान
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