वो बचपन की यादें, वो बचपन के साथी
वो नन्हीं-सी गुड़िया, वो घोड़े-बाराती॥
वो पापा की थपकी , वो मम्मी की लोरी
वो मामा का कन्धा , वो चाचा की गोदी॥
वो नानी सुनाती परी की कहानी
वो दादी हमें अपने संग में घुमाती॥
वो झूले की डाली, वो आंगन की मिट्टी
वो छुट्टी की घंटी , वो मामा को चिट्ठी॥
काश वो दिन लौट आयें कहीं से………….
वो छुपना – छुपाना , वो हँसना – हँसाना
वो गिरना – संभालना, वो फिर दौड़ जाना॥
किसी की ना सुनना, बस अपनी चलाना
वो हरदम बस खेल का, ढूंढे बहाना॥
वो भाई – बहन का लड़ना – झगड़ना
वो खुद रूठ करके खुद ही मान जाना॥
वो काम बिगाड़ के, मुंह का फुलाना
फिर मम्मी से कहना, पापा को मत बताना॥
काश वो दिन लौट आयें कहीं से………….
वो स्कूल को जाना, वो गप्पें लड़ाना
वो हिस्ट्री की कक्षा में छुप-छुप के खाना॥
वो टेस्ट ना देना लगा के बहाना
वो मीटिंग करना के कल न कोई आना॥
वो प्लेन उड़ाना, वो बस्ते छुपाना
वो करके शरारत सभी को सताना ॥
वो नाच वो गाना वो ट्यूशन की मस्ती
वो बारिश की बूँदें वो कागज की कश्ती॥
काश वो दिन लौट आयें कहीं से …………..
सब बन गया है एक गुजरा जमाना
जो कभी अब नहीं लौट आना
जो कभी अब नहीं लौट आना ॥
– प्रिया चौहान
Leave a Reply